स्याह रंग भी उतना ही आकर्षक होता है ..जितना की उदासियों के दुशाला का सम्मोहन ….उसकी गहरायी की कोई थाह नहीं होती …उसमें समायी ठंडक ……उसमें समाया एक निर्लिप्त मौन ….कितना उदार होता है …..सब कुछ समेट लेता है अपने भीतर की ऊष्मा में सहज रूप से…न जाने कितने रंग न जाने कितने रूप न जाने विधि की कितनी सिद्धियाँ सब किसी वशीकरण में हो उस सलोने के आगोश में …… उसकी अनदेखी से नितान्त वैयक्तिक ”मौन” भी अपना नहीं रह पता …….स्वागतयोग्य हो न हो ….पर…ये उदासियाँ ”मौन” को सतत गतिशील रखती रहे ….ये भी जीवंत होने का एक प्रमाण है …..सांसों की यांत्रिक आवाजाही से इतर …
दी …
स्याह रंग स्वयं में … अपने प्रतीकात्मकता में …. बड़ा ही घ्रणित माना जाता रहा है पर…. इसे पसंद करने वाले प्रमाणिक रूप से …. परिस्थितियों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले और …. हार न मानने की अभूतपूर्व क्षमता रखने वाले होते हैं , हैं न…. ?
और दी …. निर्लिप्त मौन …. तो बस वाणी तक ही सीमित है न…. ?
सादर प्रणाम _()_
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मुझे नहीं लगता की स्याह रंग घृणित हो सकता है …ये बस एक ओट है …सुरक्षा कवच है …एक हदबंदी है ..बाहर की दुनिया से ..भावनाओं के समुंद्र को अनुशासित और परिष्कृत करते रहने के लिए अपनाया गया परिपक्व दुशाला …एक तरह का अंत भी है ये स्याह रंग … भीतर ही संतुलन स्थापित कर नए शुरुआत केलिए उद्द्यत …
.विपरीत या जंग लगी परिस्थतियों के विरुद्ध .. हाँ इसे दृढ इक्छाशक्ति का प्रतीक मान सकती हूँ …
अगर शब्द तक ही होता तो ..वाणी विलास की ज़रुरत ही क्यूँ पड़ती बाबा ….हर नए पल के लिए energy तो चाहिए ही न ….aseem sneh aur ashish vandana
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इस मुद्दे पर लम्बा discussion चल सकता है !
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🙂
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syah rang, jaise kisi ko bhi ek dum se khinchta hai, waise hi maun……!!
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nahin mukesh……maun dharan karne wale ke prati khinchaav ho sakta hai par vo bhi apni apni sochon ke dayre mein kendrit ho kar…….aur ye jo maun hai nitant vaiyaktik hota hai….chahein wo adtan ho ya paristhiti jany…..apne mein simta sa….isliye kautoohal ka vishay sada hi rahta hai…
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